लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

गुरुवार, 24 मार्च 2016


रंगों में जीवन का अर्थ खोजता आदमी  बेरंग हो गया। भूख का कोई रंग नहीं प्यास का कोई रंग नहीं। आदमी की जरूरत का भी कोई रंग नहीं फिर भी आदमी रंग दिखाता है, बल्कि कपड़ों की तरह रंग बदलता है । सच तो ये है की आदमी के दुःख का कोई रंग नहीं हर वक़्त तलाश में भटकते हुए आदमी का कोई रंग नहीं ।  न इनकी परिभाषा है जो इन्हें जैसा नाम दे इनकी जरूरतें  वैसा ही  आकार  ले लेती है....   ये भी जरुरी  नहीं जिसने रंगीन कपड़े आज पहने हो, उसके जीवन में भी रंग हो। ये भी जरुरी नहीं जो आज रंगीन नहीं उसका जीवन बेरंग हो। ये रंगो की रंगीनियों पर विमर्श महज एक दिवस का नहीं।  जो दिखाई दे  केवल वे ही तो रंग नहीं, तलाश उन रंगों की करना है जो जीवन से कोसों दूर प्रतीक्षा में बैठे है कोई इन्हे भी चुने और बनायें कोई कविता इनके रंगों पर  , इनके अपने रंगों पर जो उपजे है इनके पसीने से। शोभा जैन 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें