लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

मंगलवार, 15 मार्च 2016

मै जो हूँ .....

  --शोभा जैन

मैं कोई कविता नहीं
  न ही तुम्हारे जीवन का छंद ।
जिसे पढ़कर तुम मुदित हो जाते हो,
   मुदित करते हो ओरो को ।
मैं वो प्रसंग भी नहीं,
   जो चर्चा का विषय बन जाय।
न ही किसी के जीवन  का रंगमंच
   जिसे देखने भीड़ जमा हो जाय
मैं  महाकाव्य हूँ।
  जिसे पढ़ पाना ,
पढ़ कर समझ पाना,
किसी के महाकवि होने का प्रमाण है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें