लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

हम प्रति क्षण दो समानान्तर जीवन जी रहे होते हैं – एक, जो हमारे बाहर दुनियावी कोलाहल बनकर तैर रहा है, दूसरा – जो हमारे भीतर कुलबुला रहा होता है। जब इन दोनों जीवनों के मध्य असमंजस की लहरें उफान लेने लगती हैं, तो सहन करने की एक निश्चित सीमा के उपरान्त विद्रोह का अंकुर फूटता है। इस अंकुर से फूटता है जीवन का वास्तविक अर्थ और स्वयं के अस्तित्व का कारण।---शोभा जैन

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