लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

मंगलवार, 24 मई 2016




                         आलेख –‘जल’ ‘संरक्षण’ ही अंतिम विकल्प
  
                                                             शोभा जैन 

धरती पर मौजूद सभी पदार्थों में ‘’जल’’ सबसे साधारण, सबसे महान् और सबसे आश्चर्यजनक है। शोधकर्ताओं द्वारा तो इस तथ्य की भी खोज की जा रही है स्रष्टि में जीवन की उत्पत्ति, उद्भ्व और विकास में ‘’जल’’ की विशिष्टताओं की कितनी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। फिर भी अधिकतर लोग इसके बारे में बहुत कम जानते है या यूँ कहें जब –जब ‘’जल’’ संकट से गुजरते है इसके बारे में जानने की जिज्ञासा प्रबल होती है । आमतौर पर वैज्ञानिक द्रष्टि से ‘’जल’’ या पानी  एक आम रासायनिक पदार्थ है, जिसका अणु दो हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु से बना है - H2O, किन्तु धरती पर पाये जाने वाले समस्त पदार्थों में ‘जल’ प्रकृति का सबसे बहुमूल्य विशिष्ट और आसाधारण गुणों से युक्त एक एसी अनिवार्य आवश्यकता है जिसके बिना जीवन संभव नहींअतः यह स्पष्ट है –- धरती पर जीवन के अस्तित्व के लिये ‘जल’ अनिवार्य आवश्यकता है।’ धरती पर चारों तरफ़ (धरती का लगभग तीन-चौथाई भाग)  पानी से घिरे हुए है, इसके बावजूद हम लोग भारत और दुनिया के दूसरे देशों में पानी की समस्या से जूझ रहें है, ये हमारा दुर्भाग्य है, किन्तु इसके पीछे के वैज्ञानिक कारण इस दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति से कहीं उपर है।  क्योंकि महासागर में लगभग पूरे जल का 97% नमकीन पानी है, जो इंसानों के उपयोग के लिये सही नहीं है। धरती पर मौजूद पूरे जल का केवल 3% ही उपयोग लायक है (जिसका कि 70% बर्फ की परत और ग्लेशियर के रुप में है और 1% जल ही पीने लायक पानी के रुप में।  दरअसल ‘जल’ विश्व अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।यह रासायनिक पदार्थों की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए विलायक के रूप में कार्य करता है।  विश्व में स्वच्छ पानी की पर्याप्तता लगातार गिर रही है दुनिया के कई हिस्सों में पानी की मांग पहले से ही आपूर्ति से अधिक है और जैसे-जैसे विश्व में जनसंख्या में अभूतपूर्व दर से वृद्धि हो रही है, तीव्र शहरीकरण, ओद्योगिकरण से निकट भविष्य में इस असंतुलन का अनुभव बढ़ने की निराशा ही दिखाई दे रही है, जबकि ‘पोषण’ और ‘जल’ ये दोनों ही मनुष्य और जीव  की बुनियादी आवश्यकतायें है ‘जल’ ‘जीवन का आधार है ।‘यह  एक तरह से  प्रकृति प्रदत्त एक विलक्षण योगिक है।
        किन्तु स्वच्छ ‘’जल’’ का अभाव एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है। ये ऐसी समस्या है जिसको वैश्विक स्तर पर लोगों के मिलकर प्रयास करने की जरुरत है। दुनिया के कई भागों में खासकर विकासशील देशों मे भयंकर जलसंकट है और अनुमान है कि 2025 तक विश्व की आधी जनसंख्या इस जलसंकट से दो-चार होगी। अक्सर पाया जाता है आम लोगों को पीने और खाना बनाने के साथ ही रोजमर्रा के कार्यों को पूरा करने के लिये जरूरी पानी के लिये लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। जबकि दूसरी ओर, पर्याप्त जल के क्षेत्रों में अपने दैनिक जरुरतों से ज्यादा पानी लोग बर्बाद कर रहें हैं।जीवन के सभी कार्यों को निष्पादित करने के लिये जल की आवश्यकता है क्योकि न तो पानी पीने पर नियंत्रण किया जा सकता है न ही  भोजन बनाने, नहाने, कपड़ा धोने, फसल पैदा करने आदि में किन्तु इसे प्रदूषित होने से बचाकर इसकी आपूर्ति को पूरा करने का प्रयास किया जा सकता है इसके लिए उचित प्रदूषण प्रबंधन होना चाहिये ।  ‘’जल’’ ‘जीवन’ की गुणवत्ता को आश्वस्त करने के लिये  मुख्य घटक और एक सार्वभौमिक द्रावक है। धरती पर स्वच्छ ‘’जल’’ के महत्व को समझना चाहिये अन्यथा निकट भविष्य में लोग अपनी मूल जरुरतों को भी पूरा नहीं कर पाएंगे।  कुछ महत्वपूर्ण अध्ययन तथ्य बताते है कि ऐसा पाया गया कि लगभग 25% शहरी जनसंख्या की साफ पानी तक पहुंच है ही नहीं है।इसलिए स्वच्छ पानी की कमी से निपटने के लिये एक-साथ आने की जरुरत है। अपने प्रतिदिन की गतिविधियों में कुछ सकारात्मक बदलाव करने की जरुरत है।  अब हम देख सकते हैं कि---- सभी जगह शुद्ध पानी  बॉटल में  बिक रहा है। पहले लोग पानी को दुकानों में बिकता देख आश्चर्यचकित हो गये थे पानी जैसी चीज के लिए भी पैसे देनी होंगे जबकि छोटे गाँव में आज भी मांगने पर अनजान राहगीरों को घर से लौटे में ससम्मान ‘जल’ दिया जाता है उसके कोई पैसे या कीमत नहीं चुकाई जाती किन्तु शहरों में स्थिति ठीक इसके विपरीत है।  जबकि गाँव में महिलाएं अधिक मशक्कत से  दूर-दूर से अपने सिर पर तीन चार घड़े एक साथ रखकर पानी लाती है फिर भी वहां ‘’जल’’ मुफ्त में मिलता है।  किन्तु शहरों में पानी की  कीमत देनी होती है  ये मानवता के लिए दुखद विषय है। हालांकि अब शहरों में तो लोग, अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिये 20 रुपये प्रति बॉटल से भी  अधिक देने के लिये तैयार हैं जबकि ‘’जल’’ प्रकृति प्रदत्त उपहार है फिर इंसानों द्वारा उसकी कीमत लगाई और चुकाई जा रही है।  सच तो ये है की जिसका निर्माण इन्सान ने नहीं किया उसकी कीमत मांगने का अधिकार इंसान को नहीं किन्तु इस बात को समझने के लिए प्रक्रति से जुड़ाव होना अधिक आवश्यक है । भारत के जिम्मेदार नागरिक होने के नाते, पानी की कमी के सभी समस्याओं के बारे में हमें अपने आपको जागरुक रखने की गंभीरता से आवश्यकता है।  विश्व में शायद ही कोई वस्तु ऐसी होगी जो पानी से भी ज्यादा आम हो। ‘’जल’’ एक बेहद  उत्कृष्ट विलायक है । ठोस, द्रव, और गैस तीनों रूप में पायी जाने वाली इसकी महत्वपूर्ण भूमिका को समझे। पानी को बचाना अपना ‘धर्म’ समझें, पानी के अपव्यय को रोकें । लाखों लोगों का एक छोटा सा प्रयास ‘जल’ संरक्षण अभियान की ओर एक बड़ा सकारात्मक परिणाम दे सकता है जो जीवन के लिए वरदान साबित होगा । हम स्वयं पानी का निर्माण नहीं कर सकते, और जिसका निर्माण नहीं किया जा सकता, वह स्वनिर्मित होता है उसे सहेजना ही अंतिम विकल्प है  ‘’जल’’ ‘स्वनिर्मित प्राकृतिक सम्पदा है।’ इसे सहेजे और प्राकृतिक दोहन के बचाव में अपनी अहम भूमिका निभायें।

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