लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

रविवार, 29 मई 2016

                                                           --सच्चा पिता --

                                                           शोभा जैन

एक पिता की  किसी भी इंसान के जीवन में सबसे अहम भूमिका रहती है ...पिता कहलाने का अधिकार भी उसी को है जिसकी अपनी परेशानियों के चलते, अभावों के चलते,वो इन सब का घड़ा अपने बच्चों के सर पर न फोड़े बल्कि इन्ही विपरीत हालातों में वो बच्चों की परेशानियों उनके दर्द उनकी तकलीफों को समझे ...पिता कहलाने के लिए नहीं  निभाने के लिए होता है ....'सच्चा पिता' वही होता है जो अपने बच्चों के सपनों को जमीन पर उतारने की स्वतंत्रता दे ...बच्चे  गलती करे और सुधारे , पिता सहारा दे समझाये, संभाले फिर से उठने के लिए... बच्चे आश्वस्त रहे की पिता और माता दोनों साया बनकर हमारे साथ है ...पिता बच्चों की लड़ाई नहीं लड़ेंगे ..ये लड़ाई तो उन्हें स्वयं ही लड़नी है पर सच्चा पिता वो जो इस लड़ाई में अपने बच्चों का पसीना पोछे, उनके घावों पर मरहम लगाये, उन्हें हिम्मत दे ..सबल दे ...बार -बार सीने से लगाये चियर करे , अपने बच्चों को हार नहीं मानने दे.....और कहे जाओं बेटा-- 'अपनी जमीन खुद बनाओं' ....मैं तुम्हारे पीछे खड़ा हूँ आगे तुम्हे बढना है ------''
     जिस किसी  के  पास ऐसे पिता है वो दुनियाँ का सबसे खुशकिस्मत इंसान है ....

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