आलेख
प्रकाशस्तंभ
– ‘समावर्तन’ मासिक
[
साहित्य,समाज और संस्कृति विमर्श केन्द्रित पत्रिका ]
–शोभा
जैन
सर्वविधित
है –‘पत्रिकाएँ हमारे जीवन से जुड़ी सामाजिक,सांस्कृतिक एवं साहित्यिक विधाओं के
विकास एवं संवर्धन में अहम भूमिका निभाती रही है ।’ अपनी भाषा,साहित्य एवं
संस्कृति के अध्ययन के क्षेत्र में अपना योगदान देना किसी तपस्या से कम नहीं ।
क्योकि इनका प्रभाव सीधे तौर पर समाज पर पड़ता है ।शिक्षित
समाज विकसित होता है संवर्धित होता है विचारशील,चिंतनशील होता है । पत्रिकाएँ मानव
समाज की दिशा निर्देशिका मानी जाती है । समाज के भीतर
घटती घटनाओं से लेकर परिवेश की समझ उत्पन्न करने का कार्य पत्रिका का प्रथम व
महत्वपूर्ण कर्तव्य है । सामाजिक चिन्तन की समझ पैदा करने
के साथ विचारकीय सामर्थ्य पत्रिकाओं के माध्यम से ही उत्पन्न होता है ।
निः संदेह यह कहा जा सकता है की पत्रिकाओं ने युगों से अपने दायित्व का निर्वहन
किया है ।
ऐसे ही अपने दायित्व- निर्वहन की समस्त
कसौटियों को पूर्ण करते हुए समय –समय पर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराती
‘समाज’,’संस्कृति’ एवं ‘साहित्यिक’ विमर्श
केन्द्रित राष्ट्रीय स्तर की हिंदी पत्रिका ‘समावर्तन’ अनेक पड़ावों से
गुजरकर आज राष्ट्रीयता की मिशन यात्रा में विगत नौ वर्षों से अनवरत प्रकाशन कर समाज, लोकसंस्कृति एवं साहित्य
के संवर्धन में अपना बहुमूल्य योगदान देते हुए पत्रिकाओं के क्षेत्र में अपना
विशिष्ट स्थान बना चुकी है । ‘समावर्तन’
जिसे अब परिचय की आवश्यकता नहीं । पाश्चात्य और
आधुनिकता के मध्य जहाँ हमारी लोकसंस्कृति धूमिल होती नजर आ रही है वहीँ ‘समावर्तन’
ग्रामीण, क्षेत्रीय लोकजीवन को अपने विविध अंकों में महत्वपूर्ण स्थान देकर
सामाजिक,संस्कृति और परम्पराओं की पहचान को सम्रद्ध बनाये रखने में अपना बहुमूल्य
योगदान दे रही है । लोकसाहित्य एवं लोकसंस्कृति पर केन्द्रित राष्ट्रीय स्तर की
पत्रिका ‘समावर्तन’ की ये पहल लोक जीवन के उत्सव, पर्व-त्यौहारों,और उनकी सभी
कलाओं को जीवंत करती है जो लोक आस्था के बोधक है । निः
संदेह ‘समावर्तन’ का ये उत्कृष्ट अवदान लोकजीवन के मानसिक भाव,परंपरा,एवं
मांगलिकता के प्रति प्रेम भाव एवं जीवन के उल्लास के साक्षात् दर्शन कराता है ।
लोकसंस्कृति की भावनाओं से
ओतप्रोत,सामाजिक इच्छाओं विचारों उपलब्धियों को समझने उन्हें व्यक्त करने की पहल
-‘समावर्तन’ मासिक की यह यात्रा कब और कैसे प्रारंभ हुई इस पर एक द्रष्टि ----
‘एक छोटे से किन्तु एतिहासिक उज्जैन नाम के
कस्बे से ‘समावर्तन’ नाम की एक साहित्यिक –सांस्कृतिक
–सामाजिक सरोकार संवाहक,निराली –अनोखी –अद्वितीय और अपने किस्म की एक मात्र मासिक
पत्रिका का अभ्युदय हुआ । और उसने पंख
खोले –पहली बार भारत की राजधानी नई दिल्ली के लोदी रोड स्थित इंडिया इन्टरनेशनल
अनेक्स में जब इसका विधिवत लोकार्पण किया भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित
कविवर कुँवरनारायण ने १५ मार्च २००८ की
शाम को ५ बजे । पत्रिका के संस्थापक, संरक्षक—‘दूब से नरम, अस्तित्व
में द्रढ़ निश्चय एक ठोस चट्टानी जुनूनी उत्सवी पुरुष वरिष्ठ साहित्यकार
रंगकर्मी एवं राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित प्रो.डॉ.प्रभात
कुमार भट्टाचार्य । जिनकी
टीम आज भी पूरी निष्ठा और समर्पण से ‘समावर्तन’ के लिए अवैतनिक कार्यरत है ।
‘समावर्तन’ की टीम में ऐसे स्वनामधन्य
साहित्य सम्मिलित है जिन पर किसी भी पत्रिका को गर्व होगा । किसी भी
पत्रिका की सफलता के पीछे उसकी गहन तपस्या छिपी होती है इस तपस्या में सारथी बने –
सह
संस्थापक –सम्पादन परामर्शी –अभिलाष भट्टाचार्य,[मुम्बई]
सह
संस्थापक -स्वामी प्रकाशन एवं मुद्रक – डॉ. अजय भट्टाचार्य,[सूरत],
अध्यक्ष
सम्पादक मंडल- प्रोफेसर रमेश दवे [भोपाल]
निदेशक
प्रकाशक,डॉ.रमेश सोनी[इंदौर]
प्रधान
सम्पादक-मुकेश वर्मा[भोपाल]
सम्पादक-
डॉ.निरंजन क्षोत्रिय[गुना]
कार्यकारी
सम्पादक, श्री राम दवे [उज्जैन]
अक्षय
आमेरिया –कला सम्पादक,[उज्जैन]
प्रबंध सम्पादक-सदाशिव कौतुक,[इंदौर]
विशेष
सम्पादक, वक्रोक्ति –सूर्यकान्त नागर, [इंदौर]
सह
सम्पादक, सरोकार -डॉ.निवेदिता वर्मा [उज्जैन]
विशेष
परामर्शी,लोकरंग -शिव चोरासिया,[उज्जैन]
वाणी
दवे एवं हरदीप दायले-सहयोगी सम्पादक[उज्जैन]
एक
एतिहासिक गरिमा धारण किये पत्रिका ‘समावर्तन’ के जुलाई २०१६ में अनवरत नो वर्षों
की सफल यात्रा के अब तक सौ वाँ अंक निकल
चुके है ।समावर्तन पत्रिका की ‘रुपरेखा’
जो इसके आकर्षण का केंद्र होने की मुख्य वजहों में शामिल है इसके
तीन स्थाई स्तम्भ ---
‘एकाग्र’
–किसी एक महत्वपूर्ण साहित्यकार पर केन्द्रित अंक
‘रंगशीर्ष’
–संगीत,नाट्य,नृत्य,पेंटिंग,में से किसी एक विभूति पर केन्द्रित अंक
‘सरोकार’-
किसी एक विद्वान या पत्रकार या समाजसेवी या वैज्ञानिक या उद्योगपति जैसे किसी
विभूति पर केन्द्रित इनमें से दो स्तम्भ हर अंक में होते है ।
इस प्रकार इसकी रुपरेखा से यह स्पष्ट होता है
की ‘समावर्तन’ अपने किस्म की एक मात्र धरोहरधर्मी पत्रिका हमेशा बनी रहेगी ।समावर्तन
में चार चौमासे छपतें है अर्थात् हर अंक
में एक चौमासा होता है ---
व्यंग्य
केन्द्रित चौमासा - वक्रोक्ति
चिन्तन
केन्द्रित चौमासा –मनोराग
कविता
केन्द्रित चौमासा –कव्यराग
कथा
केन्द्रित चौमासा –कथाराग एवं लोकसाहित्य –
संस्कृति
पर केन्द्रित एक मासिक स्तम्भ ‘लोकरंग’
। ए4 आकार का लगभग 100 प्रष्ठों का प्रत्येक अंक ‘समावर्तन’ मासिक अबाध गति से निरंतर
प्रकाशित होता रहा पूरे नौ वर्षों से अप्रेल २००८ से जुलाई २०१६ तक ।जिस तरह पत्रिकाओं
को प्रतियोगिता की मार सहनी पड़ती है ‘समावर्तन’ भी परोक्ष रूप से न चाहते हुए भी इसका हिस्सा रही ।
विज्ञापनों के अभाव ने ‘समावर्तन’ को विचलित अवश्य किया किन्तु समावर्तन ने कभी
अवकाश नहीं लिया । ..बल्कि वो अपने स्वरुप में सदैव
और निखरकर सामने आयी । ‘समावर्तन’ का काया कल्प इतना
खूबसूरत की पन्नों को पलटने में पाठक को स्वयं संवेदन और शालीन होना पड़े ।
प्रत्येक प्रष्ठ सृजन का पर्याय पूरी पत्रिका बहुरंगी और चिकने मोटे कागज पर उकेरी
गई जिसके फलस्वरूप पाठक हर अंक को सहेजने पर विवश रहे । हिंदी साहित्य की शायद ही एसी कोई पत्रिका हो
जिसकी आंतरिक खूबसूरती प्रष्ठों पर रंग रोगन का चयन,शब्दों की बनावट और कसावट इतनी
आकर्षक की बतौर पाठक पत्रिका का कोई भी
प्रष्ठ उसके पाठन से अनछुआ नहीं रह सकता । ज्ञान का
ऐसा खजाना जिसमें साहित्य, रंगकर्म, सामाजिक क्षेत्र के दिग्गजों की जीवन
यात्रा,उनके अनुभवों को ‘साक्षात्कार’ के
माध्यम से अथवा उन पर केन्द्रित अंकों को पाठक के समक्ष प्रस्तुत करने की शैली,
पाठकों की समझ को विकसित करने की इतनी सृजनात्मक पहल अन्यत्र किसी पत्रिका में नहीं दिखाई पड़ती । निः संदेह ‘समावर्तन’ हिंदी साहित्य जगत की एकमात्र
एसी पत्रिका है जो साहित्यिक होने के साथ, लोक साहित्य, लोक संस्कृति एवं सामाजिक
सरोकारों को भी उतनी ही उत्कृष्टता से अपने भीतर पिरोये है ।और किसी भी पत्रिका का सबसे महत्वपूर्ण अलंकार उसकी
उत्कृष्ट भाषा शैली भी होती है ‘समावर्तन’ में कार्यरत समस्त ‘साहित्य धन्य’ विशेषतः
वर्षों से कार्यरत सम्पादक मंडल इसे इस अलंकार से विभूषित कर परिपूर्ण बनाते
है एक विशिष्ठ धरोहरधर्मी मासिक पत्रिका
के लिए सामग्री संचयन इसकी विशिष्टता को बनाए रखने के लिए एक कष्टसाध्य कार्य है
जिसे साधने में सम्पादक मंडल की निष्ठा और समर्पण समावर्तन के काया कल्प में
स्पष्ट परिलक्षित होता है ।
यह भी अत्यंत गौरव का विषय है की ‘समावर्तन’
श्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिकाओं के सम्पादन की श्रेणी में ‘राष्ट्रीय ख्याति के
बहुचर्चित अठारहवे अम्बिकाप्रसाद दिव्य स्मृति प्रतिष्ठा पुरस्कार से पुरस्कृत हो अपना विशिष्ट स्थान बना चुकी है इस हेतु समावर्तन पत्रिका के प्रधान सम्पादक
मुकेश वर्मा जी, भोपाल को ‘समावर्तन’ पत्रिका के लिए दिव्य प्रशस्ति पत्र से नवाज़ा
भी गया । समावर्तन का लक्ष्य साहित्य-संस्कृति को महानगरों
में सिमटने के बजाय छोटे शहरों तक विकेन्द्रित किया जाना है ताकि देश के दूर-दराज
में फैली प्रतिभाओं को उचित मंच मिल सके। उज्जैन से प्रकाशित इस मासिक पत्रिका ने
इस अपेक्षा को पूरा किया है और अब यह हिन्दी की राष्ट्रीय स्तर की पत्रिका के रूप
में प्रतिष्ठित हो चुकी है। बगैर किसी विज्ञापन के एक मासिक पत्रिका को अनवरत जारी
रखना एक चुनौति है। गत नौ वर्षों की यात्रा में ‘समावर्तन’ ने जहाँ देश के शीर्षस्थ
साहित्यकारों-रंगकर्मियों पर एकाग्र अंक प्रकाशित किये हैं वहीं नई एवं युवतम
प्रतिभाओं को भी मंच प्रदान किया है। अब तक
इस पत्रिका में अशोक वाजपेयी, पणिक्कर, त्रिलोचन,
शरद जोशी, गिरिराज किशोर, राजेन्द्र यादव, बादल सरकार, अमरकान्त,
रज़ा, सुनीता जैन, रमेशचन्द्र
शाह, कुमार गंधर्व, मन्नू भण्डारी,
कृष्ण बलदेव वैद, ब.व. कारंत, हकु शाह, राजी सेठ, धनंजय
वर्मा, सिद्धेश्वर सेन, अमृतलाल वेगड़,
गोविन्द मिश्र, दिनेश ठाकुर, विजय तेन्दुलकर, चित्रा मुद्गल एवं हबीब तनवीर एवं
कृष्णा अग्निहोत्री, पर एकाग्र अंक प्रकाशित किये हैं। इसी के साथ कैलाश सत्यार्थी
पर सरोकार एवं अंजन श्रीवास्तव जैसे व्यक्तित्व पर रंगशीर्ष अंक प्रकाशित किये है । समावर्तन को देश के
शीर्षस्थ साहित्यकारों एवं पाठकों का निरंतर रचनात्मक सहयोग मिल रहा है। पत्रिका
में साहित्य-संस्कृति पर महत्वपूर्ण सामग्री के अतिरिक्त सामाजिक सरोकारों को भी
संजोया गया है। बच्चों और किशोरों के लिए ‘समावर्तन’ का नया स्तम्भ ‘बाल सखा’ कहीं
न कहीं बाल साहित्य प्रेरक है । पर्यावरण, जल संग्रहण, सिनेमा, मीडिया, आतंकवाद,
सूचना तकनीक जैसे विषयों पर भी स्तरीय सामग्री ने पत्रिका को
संग्रहणीय बनाया है। निष्कर्षतः भारतीय संस्कृति सामाजिक सरोकार एवं साहित्यिक क्षेत्र को
गौरवान्वित करने तथा भाषा के परिनिष्ठित रूप निर्धारण में ‘समावर्तन’ मासिक
पत्रिका का योगदान वन्दनीय है ।
‘समावर्तन’ इसी तरह अपने आगामी अंकों की सफल यात्रा के साथ चिरायु हो ।
सन्दर्भ – १ -मेरे
बाबा –डॉ.निवेदिता वर्मा २ –समावर्तन
अंक २००९
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