लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

कूड़े जैसे ढेर.....








भोजन की तलाश में गाँव से शहर आने वाले मजबूर लोग भीख में रोटी चावल की उम्मीद नहीं करते थे, वे भीख में बस चावलकी माड़ी मांगते थे। प्रेमेन्द्र लिखते हैं, 
'शहर की सड़कों पर देखें हैं,
 कुछ अजीब जीव/
बिल्कुल इंसानों जैसे/या,
 कि इंसानौं जैसे नहीं/
मानों उनके व्यंग्य चित्र, विद्रूप विकृत!/
फिर भी वे हिलते डुलते हैं बतियाते हैं, और
सड़क किनारे कूड़े जैसे ढेर बनाते हैं/
जूठन के कूड़ेदानों पर, बैठे हांफते/और माड़ी मांगते।'

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