लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन
शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016
अपनी बात
हमारी
सभ्यता ने, हमारे आधुनिक संसाधनों ने,हमारी आक्षाओं और स्वप्नों ने हमें एक निरीह
भीड़ बना दिया|मनुष्य की विडम्बना ही यही है की भीड़ हो जाने के बाद वह व्यवस्था की उपेक्षा का शिकार होता चला जाता है|
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