वह हमेशा जागती रहती है
नदी की तरह
नदी की तरह
वह हमेशा खड़ी रहती है
पहाड़ की तरह
वह हमेशा चलती रहती है
हवा की तरह
पहाड़ की तरह
वह हमेशा चलती रहती है
हवा की तरह
वह अपने भीतर कभी
अपनी ऋतुऍं
नहीं देख पाती है
वह अपनी ही नदी में
कभी नही नहा पाती है
अपनी ऋतुऍं
नहीं देख पाती है
वह अपनी ही नदी में
कभी नही नहा पाती है
'ओरत' अपने ही स्वाद को
कभी नहीं चख पाती है।
कभी नहीं चख पाती है।
---संकलित
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