लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017


अर्धनारेश्वर 
अपनी बात -- नर श्रम करके तपता है,नारी रात्रि बनकर उसे शांति प्रदान करती है|नारी विभिन्न रूपों में नर की प्रेरणा रही है |इसीलिए पुरुष को अर्धनारेश्वर की संज्ञा दी जाती है क्योकि वह स्त्री के बिना अपूर्ण है |और यही दोनों की नियति है |--शोभा जैन 

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