लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

रविवार, 12 फ़रवरी 2017

                         
महज़ एक दिन महसूस किये जाने वाले 'प्रेम दिवस ' पर एक कविता

        कुछ प्रीत निभा लें ..

             -शोभा जैन

चलों आओं थोड़ी सी ‘रीत’ निभा लें
कुछ कहने सुनने में ‘प्रीत’ निभा लें
कुछ ऐसा हो जो अपनों को अपनों से मिला लें  
चलों आओं थोड़ी सी रीत निभा लें
कुछ कहने सुनने में प्रीत निभा लें|
बोये बहुत हैं कांटें कुछ गुलाब अब लगा लें
चलों आओं थोड़ी रीत निभा लें
कुछ कहने सुनने में प्रीत निभा लें|
क्षमा दें उन्हें, खुद गलतियों की सजा लें
चलों आओं थोड़ी सी रीत निभा लें
कुछ कहने सुनने में प्रीत निभा लें|  
ये अभिमान,अहंकार, की सीमाएं मिटा लें
चलों आओं थोड़ी सी रीत निभा लें
कुछ कहने सुनने में प्रीत निभा लें|
स्वप्न जो बिखरे हैं उन्हें आँखों में बसा लें
चलों आओं थोड़ी सी रीत निभा लें
कुछ कहने सुनने में प्रीत निभा लें
छोड़ दुनियाँ से छाँव की उम्मीद
बस प्रेम की पनाह लें
चलों आओ थोड़ी सी रीत निभा लें
कुछ कहने सुनने में प्रीत निभा लें |


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