लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

बुधवार, 25 अप्रैल 2018

भीष्म सी प्रतिज्ञा
धृतराष्ट्र जैसा मोह
दुर्योधन सा हठ
द्रोण जैसा छल
शकुनि जैसी चाल 
अर्जुन जैसी ज़िद्द
भीम जैसी जुँग
युधिष्ठर सा धर्म
द्रौपदी जैसा उपहास
कर्ण सी मित्रता
बर्बरीक सी भक्ति
इस दिमाग़ में क्या क्या चलता रहता है
 ऐसा क्या है जो मन को बाँधे रहता है

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