भारतीय किसान के परिप्रेक्ष्य में
पीढ़ा के स्वर
नहीं चाहिए राज सिंहासन
ना वैभवी स्वर्ण आडम्बर
एक कलम और कुछ अक्षर
एक बूंद स्याही की दे दो
लिखना चाहूँ मैं पीढ़ा के स्वर
पीढ़ा जो अपनी नहीं है
ओरो के दुःख में पली है
संचित कर अश्रु के बादल
हल उसका फिर भी कोई न हल
एक बूंद स्याही की दे दो
लिखना चाहूँ मैं पीढ़ा के स्वर
दीपक सा जलता अन्तस्थल
रुधिर श्वेत हुआ जाता
परिश्रम जिसका जर्जर
तन को जिसके धूल ढांकती
मिट्टी सा जिसका मन
सबका सुख धन धान्य भरा
मेरा दुःख भी निर्धन
एक बूंद स्याही की दे दो
लिखना चाहूँ मैं पीढ़ा के स्वर
जीवन पथ दुर्गम तल है
मैं पंछी पर कटे पर हैं
मेरा उज्ज्वल भविष्य दरबदर
एक बूंद स्याही की दे दो
लिखना चाहूँ मैं पीढ़ा के स्वर
ना वैभवी स्वर्ण आडम्बर
एक कलम और कुछ अक्षर
एक बूंद स्याही की दे दो
लिखना चाहूँ मैं पीढ़ा के स्वर
पीढ़ा जो अपनी नहीं है
ओरो के दुःख में पली है
संचित कर अश्रु के बादल
हल उसका फिर भी कोई न हल
एक बूंद स्याही की दे दो
लिखना चाहूँ मैं पीढ़ा के स्वर
दीपक सा जलता अन्तस्थल
रुधिर श्वेत हुआ जाता
परिश्रम जिसका जर्जर
तन को जिसके धूल ढांकती
मिट्टी सा जिसका मन
सबका सुख धन धान्य भरा
मेरा दुःख भी निर्धन
एक बूंद स्याही की दे दो
लिखना चाहूँ मैं पीढ़ा के स्वर
जीवन पथ दुर्गम तल है
मैं पंछी पर कटे पर हैं
मेरा उज्ज्वल भविष्य दरबदर
एक बूंद स्याही की दे दो
लिखना चाहूँ मैं पीढ़ा के स्वर
-------शोभा जैन
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