लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

पढने और जीवन में उतारने में बहुत फर्क होता हैं.। '
दोस्तों अक्सर हम बहुत ही उच्च दर्जे की किताबें जिनमे उदाहरण स्वरुप साहित्य, मोटिवेशन सम्बन्धी, सफलता हासिल करने सम्बन्धी और अन्य -अन्य सकारात्मक विचारों सम्बन्धी किताबे पढ़ते हैं या फिर इस तरह के आलेख पढ़ने का शौक रखते हैं परन्तु क्या हम इस शौक को वास्तविक जीवन में उतार पाते हैं अक्सर मैने 11, 12 और collage के विद्यार्थियों के पास व्यक्तित्व विकास याने पर्सनालिटी डेवपलमेंट सम्बन्धी किताबें उनकी अलमारी या बैग में अक्सर देखि परन्तु उनके जीवन में उससे जुडी आधारभूत बातों का अभाव ही पाया। कभी- कभी एक मनोवैज्ञानिक कारण हो सकता हैं की हम सिर्फ उस तरह की किताबों को पास में रखने और कुछ समय उनके साथ समय बिताने को समझ बैठते हैं की हम उन्हें जीवन में उतार भी रहे हैं पर वो दिखने में ऐसा प्रतीत होता हैं पर वास्तविकता बहुत कठिन प्रतीत होती हैं स्वेट मर्टन और शिवखेड़ा की किताबे और 'लोकव्यवहार कैसे करें' जैसी किताबें पास में रखने से हमारे व्यक्तित्व को अनुशासित अवश्य दर्शाती हैं लेकिन उन किताबों में लिखी बातों को वास्तविक जीवन में उतरने से वास्तव में वो हमारा व्यक्तित्व वैसा ही बनाती हैं मैने कुछ विधयर्थियों को ये करनें के लिए की कहा जो किताबे वो रखना पसंद करते हैं उन्हें अपनाना भी शुरू कर दे [पाठ्यक्रम से हठकर] और फिर अपने जीवन में,अपने व्यवहार में आये बदलाव को स्वयं महसूस करें सिर्फ पढन्तु या दृश्यानुशसित न बने वास्तव में बने.। बार- बार पढ़े तब तक जब तक उसे अपनाने पर विवश न हो जाय १० बातों का रेपिटेशन होगा तो तीन अपने आप आदत में शामिल होने में आसान हो जाएगी और धीरे धीरे आपके स्वभाव का हिस्सा भी इसलिए मेरा हर माता-पित,मित्र और मार्गदर्शक से अनुरोध हैं अगर आप अपने आस पास किसी को इस तरह अच्छी किताबों का कलेक्शन करते देखे तो उसे एक बार अवश्य उसमे लिखी बातों को प्रायोगिक रूप से अपनाने के लिए प्रेरित करें उसके बाद उनमे आये बदलाव को उन्हें महसूस भी करवाये ये आपकी परोक्ष रूप से समाज सेवा भी हैं और किसी को अच्छे कार्य की पूर्णता के लिए मोटीवेट करना भी क्योकि अच्छा कार्य सिर्फ अच्छी किताबें पढ़ने तक सिमित नहीं जब तक उसका उपयोग हम वास्तविक जीवन में न करें उस कार्य की पूर्णता उसको अपनाने में निहित हैं। और किसी चीज को अपने पास रखना और अपनाना दोनों में बहुत फर्क होता हैं । 

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