'मुलाकात' शब्द याद दिलाता हैं कई रिश्तों में बंधी स्मृतियों को दोस्ती, प्रेम या फिर वो रिश्ते जो हमने बनाये नहीं हमें विरासत में मिले हैं.. हर रिश्ते के साथ मुलाकात के अलग -अलग अनुभव हमें कभी- कभी डुबों देते हैं हमारे गुजरे वक़्त में जिसे हम इतिहास कहते हैं । हमारे जीवन की अहम बातों में शामिल हैं कुछ मुलाकातों की अनुभूति जिसे हम जीते हैं एकांत में। आपके जीवन में भी अगर कोई मुलाकात बेहद अविस्मरणीय रही हैं तो उसे तब जरूर स्मृतिपटल पर अंकित करे जब आप अपने जीवन के किसी कठिन दौर से गुजर रहे हो जिसे टाला जाना थोड़ा दुष्कर प्रतीत हो रहा हो और किसी को ये आभास भी नहीं देना चाहते की आप कितने अकेले हैं इस भीड़ में। उस वक़्त ये मुलाकातें कभी -कभी वो असर कर जाती हैं जिसे हम वास्तव में मिलकर भी नहीं समझ पाते लेकिन उन कठिन क्षणों में उन स्मृतियों का आभास मात्र हमें एक बार फिर से ऊर्जावान बना देता हैं ये एक ऐसा मनोवैज्ञानिक नुस्खा हैं दुर्बलताओं और कमजोर दौर से उबरने का की न तो इसकी कोई कीमत देनी हैं न निर्माण करना हैं ये वो पुरानी ओषधि हैं जिसका प्रयोग पुराने होने के साथ -साथ उपयोगी और गुणकारी होने लगता हैं उदाहरण के तौर पर अपने पिता के साथ गुजारा वक़्त या फिर अपनी माँ के साथ हुई गंभीर या मन की बातें। भाई -बहनों के साथ कोई विशेष स्मृति या फिर दोस्तों के बीच गुजरे सुख- दुःख के पल या फिर हृदय के सबसे करीब किसी इंसान के साथ जिया समय.। ये सब मुलाकातों के ही पात्र हैं जो हमारे जीवन की ओषधि बन जाते हैं जितने पुराने होते हैं उतने अधिक गुणकारी।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें