लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

जीवन एक त्यौहार की तरह हैं और अस्तित्व एक उत्सव जैसा जब हम जीवन में उत्सवों को जीने लगते हैं हमारा जीवन उसी क्षण परिवर्तित होता चला जाता हैं इसलिए कभीं न थमने वाली इच्छाओं के वशीभूत होकर अपने वर्तमान का शोषण न करे और अपने जीवन की पीढ़ा को अंतहीन समय न बनने दे। हमारे आस पास बहुत खूबसूरती हैं बल्कि हमारे भीतर भी उसे भरपूर जिए, प्रकृति की सुंदरता, पेड़ों की भाषा, पुष्पों के रंग, जंगल का मौन महसूस करें जीवन को उत्सव में शामिल करें इसी से जीवन बनता हैं और उत्सव कभी खत्म नहीं होता यही अस्तित्व का आग्रह भी हैं.। परन्तु या तो हम इतिहास में जीते हैं या भविष्य में, और फिर वर्तमान हमसे निरंतर दूर होता चला जाता हैं, जो नहीं हैं उससे दुःखी, जो है उससे अतृप्त, यही हमारे दुःख का कारण हैं.. यही हमारे जीवन का दुर्व्यवहार भी। इसलिए उत्सवों में भाग लेना सीखे न की उनसे भागना।

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