जीवन एक त्यौहार की तरह हैं और अस्तित्व एक उत्सव जैसा जब हम जीवन में उत्सवों को जीने लगते हैं हमारा जीवन उसी क्षण परिवर्तित होता चला जाता हैं इसलिए कभीं न थमने वाली इच्छाओं के वशीभूत होकर अपने वर्तमान का शोषण न करे और अपने जीवन की पीढ़ा को अंतहीन समय न बनने दे। हमारे आस पास बहुत खूबसूरती हैं बल्कि हमारे भीतर भी उसे भरपूर जिए, प्रकृति की सुंदरता, पेड़ों की भाषा, पुष्पों के रंग, जंगल का मौन महसूस करें जीवन को उत्सव में शामिल करें इसी से जीवन बनता हैं और उत्सव कभी खत्म नहीं होता यही अस्तित्व का आग्रह भी हैं.। परन्तु या तो हम इतिहास में जीते हैं या भविष्य में, और फिर वर्तमान हमसे निरंतर दूर होता चला जाता हैं, जो नहीं हैं उससे दुःखी, जो है उससे अतृप्त, यही हमारे दुःख का कारण हैं.. यही हमारे जीवन का दुर्व्यवहार भी। इसलिए उत्सवों में भाग लेना सीखे न की उनसे भागना।
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