लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

दुनियाँ में कोई भी काम तीन बातों की वजह से होता हैं पहली - जरूरत, दूसरी- मजबूरी, तीसरी शौक [पसंद,हॉबी] इन्ही तीनों के मध्य जंजाल में जिम्मेदारी फर्ज और अन्य- अन्य पर्याय के रूप में हमारी पूरी 'करनी' या कृत्य से सम्बंधित 'बातें निहित हैं जो किसी भी काम को करने के लिए हमें प्रेरित करती हैं परन्तु मूल में तीन ही समाहित हैं। कहीं पर दो कही पर तीन परन्तु इनमे से ही कोई एक। पर इन्ही तीन के भीतर भिन्न -भिन्न अर्थो पर निर्भर हैं हमारे जीवन की कार्मिक प्रक्रिया। इन तीनों के इर्द गिर्द ही परिणाम भी उसी मुताबित ही आते हैं क्योकि जरूरत के लिए किये गए काम के तौर तरीके और परिणाम भिन्न होते हैं ,मजबूरी में किये गए काम की सूरत अलग ही नजर आती हैं.. और शौक या पसंद से किये गए काम की खूबसूरती अलग ही शोभा देती हैं । इसलिए जब भी आप कोई भी काम करे एक बार ये अवश्य सोचे की ये काम आप क्यों करना चाहते हैं। फिर शायद कभी आप परिणामों से आश्चर्य नहीं करेंगे। 

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