लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

बुधवार, 9 दिसंबर 2015

बचपन

वो बचपन के दिन जब याद आते हैं ,
वो लम्हे वो पल ताजे और मासूम हो जाते हैं
वो स्कूल जाने के बहाने बनाना ,
वो जीतने कि होड़ मैं दोस्तों को गिराना
वो बारिश के पानी मैं, डबरे मैं, नाली मैं,
नावें तिराना खुद भीगना, भिगाना
वो पत्थर गिराना वो बोर झ़ड़ाना ,
एक का रूठना दूजे को मनाना
घर कि चिंता दुनिया का डर ,
सबसे आंसा खूबसूरत सफ़र
वो छुट्टी के आवेदन पर पापा के साइन बनाना
,खेलने के रोज नए बहाने बनाना
वो स्कूल कि घंटी वो खेल का मैदान ,
कुछ भी पापा से कहना, कितना था आसान
जुलाई के स्कूल नयी किताबो कि खुशबू ,
नई क्लास के मॉनिटर बनने कि ख्वाहिश
वो कापी पर नया कवर चढ़ाना,
खास टीचर कि कापी मैं सुविचार लिखवाना
 कितने निर्भर थे हमसब मम्मी पर
खाने पीने और सो जाने  मैं
जीवन कि हर एक क्रिया मैं हसने मैं, या रोने मैं
पर अब मैं बड़ी हो गयी हूँ
खुद के पैरो पर खड़ी हो गयी हूँ
बूढ़े होते हर एक दिन से डरने लगी हूँ ,
खुद अपने आप से लड़ने लगी हूँ
सपना हैं मेरा तू कभी बड़ी होना
उतना ही जीवन देना,
जितना माँ कि गोदी मैं खड़ी होना
माँ मैं अब बड़ी हो गयी हूँ हद से
पर छोटी रह गयी हूँ जीवन के कद से
जाना हैं मेने बस इतना, जीवन का एक टुकड़ा हैं बचपन
जीवन का सबसे सुंदर मुखड़ा हैं

       शोभा  12 /11 /2013

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