लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन
बुधवार, 20 जनवरी 2016
राष्ट्रीय पत्रिका 'समावर्तन' जनवरी 2016 के अंक में प्रकाशित मेरी लघु कहानी 'किशोर मन का प्रेम' 'http://www.samavartan.com/pdf.php?pdf=jan2016 (page 35-36) -पढने के लिये क्लिक करें पत्रिका के प्रष्ठ ३५, ३६ पर उपलब्ध हैं
अशेष शुभकामनायें और अगली रचना की प्रतीक्षा
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