आलेख - संतुष्टि
लेखिका -शोभा जैन
पुरुषों की तुलना में महिलायें अपने जीवन से ज्यादा असंतुष्ट रहती हैं। उनकी असंतुष्टि को समझ पाना आज भी एक जिज्ञासा का विषय बना हुआ हैं दरअसल उन महिलाओं को भी अक्सर शिकायती मोड़ पर पाया गया जिन्हे अपने पतियों या पिता द्वारा भरपूर सुविधाये और और संपन्न जीवन दिया गया सम्पन्नता का संतुष्टि से सीधा सम्बन्ध न हो पर विपन्न लोगो के जीवन में असंतुष्टि का कारण अक्सर सम्पन्नता का न होना ही होता हैं सीधे तौर पर कहे तो वो सिर्फ इसलिए असंतुष्ट हैं क्योकि उनके पास अधिक सुख सुविधाएँ नहीं हैं और वे तुलनात्मक रूप से स्वयं में हींन भावना से ग्रसित होकर अपने जीवन से असंतुष्ट रहती हैं किन्तु जिनके पास सबकुछ हैं वो क्यों असंतुष्ट हैं भई ... ... दरअसल जो हमारे पास हैं अक्सर हम उसकी कद्र करने के बारे में सोचते विचारते नहीं हैं उसे सिर्फ भोगते या फिर जीते चले जाते हैं इसलिये उसमे सृजन की प्रक्रिया का समावेश नहीं पाता फिर बाहर भटकते हैं तलाशते हैं अपनी कभी न पूरी होने वाली असंतुष्टि की पूर्णता बाहर की नवीनता क्षणिक सुख देगी पर जीवन का आनंद जो आपके पास हैं उसमें नवीनता लाने में ही मिलेगा ये सत्य हैं
निः संदेह ये समय परिस्थितियों के अतिरेक का समय हैं पर हर बार परिस्थितियों का नाम लेकर हम अपने परिश्रम से हाथ झटक ले ये कहाँ का न्याय हैं
इसलिए महिलाओं से मेरा विशेष आग्रह हैं अपनी असंतुष्टि को ख़त्म कर ये खोजे की हम चाहते क्या हैं और उसके लिए हमें क्या करना होगा क्या हम अपना दायित्व और श्रम देने को तत्तपर हैं या सिर्फ पुरुष को बलि का बकरा बनाकर उनसे जीवन भर नाखुश रहने की शिकायते करने के लिए ही बने हैं सोचे गहराई से आपको चाहिए क्या और उसे पाने के लिए आप कितना एफर्ट लगाने को तैयार हैं बैठे -बैठे तो ईश्वर भी आपकी संतुष्टि का समाधान नहीं कर सकता हर समस्या का समाधान सिर्फ और सिर्फ हमारे पास होता हैं बस जरूरत हैं एक बार आत्मचिंतन करने की स्वयंसे बातें करने की शिकायत करना अन्तिम विकल्प नहीं हैं दुनिया का शायद ही ऐसा कोई काम होगा जिसके लिए इंसान शिद्त से प्रयास करे और वो सफल न हो शुरआत असफलता से ही होगी ये तय हैं पर आपका धैर्य उसे निः संदेह असफल करके ही छोड़ेगा इसलिए अपने जीवन से शिकवे शिकायतों दौर अब खत्म करों जो आपके पास हैं उसमें सृजन का रास्ता खोजो स्त्री वैसे भी सृजन का पर्याय हैं बस उसे उसी की परिभाषा में ढलने दो निर्माण करना पुरुष का दायित्व हैं सृजन करना स्त्री का कर्तव्य जब दोनों अपने अपने काम को बखूबी निभाएंगे तो जीवन में सिर्फ संतुष्टि हो होगी इसके सिवा कुछ भी नहीं।
निः संदेह ये समय परिस्थितियों के अतिरेक का समय हैं पर हर बार परिस्थितियों का नाम लेकर हम अपने परिश्रम से हाथ झटक ले ये कहाँ का न्याय हैं
इसलिए महिलाओं से मेरा विशेष आग्रह हैं अपनी असंतुष्टि को ख़त्म कर ये खोजे की हम चाहते क्या हैं और उसके लिए हमें क्या करना होगा क्या हम अपना दायित्व और श्रम देने को तत्तपर हैं या सिर्फ पुरुष को बलि का बकरा बनाकर उनसे जीवन भर नाखुश रहने की शिकायते करने के लिए ही बने हैं सोचे गहराई से आपको चाहिए क्या और उसे पाने के लिए आप कितना एफर्ट लगाने को तैयार हैं बैठे -बैठे तो ईश्वर भी आपकी संतुष्टि का समाधान नहीं कर सकता हर समस्या का समाधान सिर्फ और सिर्फ हमारे पास होता हैं बस जरूरत हैं एक बार आत्मचिंतन करने की स्वयंसे बातें करने की शिकायत करना अन्तिम विकल्प नहीं हैं दुनिया का शायद ही ऐसा कोई काम होगा जिसके लिए इंसान शिद्त से प्रयास करे और वो सफल न हो शुरआत असफलता से ही होगी ये तय हैं पर आपका धैर्य उसे निः संदेह असफल करके ही छोड़ेगा इसलिए अपने जीवन से शिकवे शिकायतों दौर अब खत्म करों जो आपके पास हैं उसमें सृजन का रास्ता खोजो स्त्री वैसे भी सृजन का पर्याय हैं बस उसे उसी की परिभाषा में ढलने दो निर्माण करना पुरुष का दायित्व हैं सृजन करना स्त्री का कर्तव्य जब दोनों अपने अपने काम को बखूबी निभाएंगे तो जीवन में सिर्फ संतुष्टि हो होगी इसके सिवा कुछ भी नहीं।
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