लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

मंगलवार, 9 फ़रवरी 2016

आलेख.
प्रमोशन या डिमोशन
लेखिका -शोभा जैन
हम सभी के जीवन में अक्सर ऐसे मोड़ आते हैं जब हमें अपने निर्णयों को बदलने या फिर उनमे फेर बदल करने का अवसर मिलता हैं किन्तु हम अक्सर जोखिम के भय से उस अवसर को भुना नहीं पाते अगर ऐसा सच मैं हैं तो फिर जीवन भर जो आपकेँ पास हैं उसे सर्वश्रष्ठ मानकर जिए न की उसमे शिकवे शिकायते खोजकर उर वर्तमान को भी जहन्नुम सा बना दे कभी कभी बदलाव की जगह फेर बदल करके भी जो हम चाहते हैं वैसा जीवन पा सकते हैं किसी वस्तु का स्थानांतरण करना सहज प्रतीत होता हैं किन्तु परिवर्तन अकेला नहीं आता उसके साथ अनायास ही आने वाली चीजो को हम नहीं स्वीकारते हमें सिर्फ वही चाहिए जो हम देखना चाहते हैं बीस यही हमारे अवसाद और तनाव का कारण बन जाता हैं हमें ये बात मानकर चलना चाहिए की सृष्टि में 'नियति' नाम की एक शक्ति काम करती हैं हम सब उसी के इर्द गिर्द अपनी रचनाये रचते हैं बदलावों के साथ स्वयं का व्यवस्थापन ही जीवन हैं संबंधों के अर्थ में ये बात विशेष कारगर हैं हर रिश्ते में समय के साथ थोड़े थोड़े बदलाव होने चाहिए updation उदाहरण -- जब एक लड़की विवाह होकर नए परिवार में प्रवेश करती हैं तब वो पत्नीऔर नवोदित बहु के किरदार में आती हैं उस समय का जीवन कुछ अलग होता हैं जब वो मातृत्व की और अग्रसर होती हैं तब उसका जीवन कुछ अलग होता हैं जब वो अपने बच्चो का विवाह करती हैं तब उसका अनुभव कुछ अलग होता हैं किन्तु अगर वो तीनो की स्थितियों में प्रथम वाले जीवन को जीने की अपेक्षा रखे [नवोदित बहु ] तो शायद वो जीवन भर अपने विवाह से नाखुश ही रहेगी यही बाते पुरुषों पर भी समानता से लागु होती हैं समय के बदलाव के साथ उनकी जिम्मेदारिया सोच और विचारों में भी परिवर्तन होना आवशयक हैं यही परिवर्तन हमें हमारे वर्तमान का आनंद लेने के लिए प्रेरित करता हैं..हमें प्रमोशन के मोड़ पर काम करना चाहिये न की डिमोशन पर ये बात सिर्फ नौकरी मैं ही नहीं जीवन में भी लागु होती हैं ....प्रमोशन का अर्थ परिवर्तित जीवन में सकारत्मक प्रवेश ....

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