पेड़ की गाथा
--शोभा जैन
मैं पेड़ हूँ।
मेरी जड़ों में समाया कई पढियों का रहस्य
मैने देखा है द्वन्द
परम्पराऔर पीढ़ियों के मध्य ।
मैने देखे है पत्तों की तरह,
इंसान के जीवन में,
सम्बन्धों के रूखेपन ।
जाने कितने
पतझड़ और बसंत।
मेरी टहनियाँ गवाह है
हर पीढ़ी कि झूलन की ।
मेरे फल पक कर गिर गये
समय के साथ ।
मैने देखा हर पीढ़ी को
अपने भीतर, अपनी काया में ।
अब मैं बूढ़ा हो चला हूँ
फिर से हरा होने के लिए
फिर से जीने के लिए वही अनुभव
ये मेरे जीवन की पुनरावृत्ति है
पुनरावलोकन के साथ ।
पुराने शब्द पर नए अर्थ की कलम लिए।
--शोभा जैन
मैं पेड़ हूँ।
मेरी जड़ों में समाया कई पढियों का रहस्य
मैने देखा है द्वन्द
परम्पराऔर पीढ़ियों के मध्य ।
मैने देखे है पत्तों की तरह,
इंसान के जीवन में,
सम्बन्धों के रूखेपन ।
जाने कितने
पतझड़ और बसंत।
मेरी टहनियाँ गवाह है
हर पीढ़ी कि झूलन की ।
मेरे फल पक कर गिर गये
समय के साथ ।
मैने देखा हर पीढ़ी को
अपने भीतर, अपनी काया में ।
अब मैं बूढ़ा हो चला हूँ
फिर से हरा होने के लिए
फिर से जीने के लिए वही अनुभव
ये मेरे जीवन की पुनरावृत्ति है
पुनरावलोकन के साथ ।
पुराने शब्द पर नए अर्थ की कलम लिए।
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