जरा सी धूप उठा और अपनी आँखों में भर,
न मेरे साथ बहुत जुड़, न मेरे साथ बिखर|
यहाँ बसे नहीं कई गाँव, बनके शहर ,
'अकेला' मैं नहीं जिसका बसा नहीं कोई घर
मुद्दतों हुई यहाँ देखी नहीं सहर,
हर शख्स घूमता है बस, उधर से इधर
न मेरे साथ बहुत जुड़, न मेरे साथ बिखर|
यहाँ बसे नहीं कई गाँव, बनके शहर ,
'अकेला' मैं नहीं जिसका बसा नहीं कोई घर
मुद्दतों हुई यहाँ देखी नहीं सहर,
हर शख्स घूमता है बस, उधर से इधर
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