लगातार टालते रहने से अक्सर निर्णय बदल जाते है। अप्रत्याशित बदले हुए निर्णयों को स्वीकारना बेहद दुष्कर होता है।अपनी मानसिकता को दोनों परिस्थितियों के लिए तैयार रखे जो परिणाम आप देखना चाहते है और जो नहीं देखना चाहते है फिर किसी के भी जीवन में कुछ अप्रत्याशित घटित ही नहीं होगा । हम सबके भीतर एक भीड़ छिपी होती है जो हमें कुरेदती है,पथविमुख करने को उतावली रहतीहै,अक्सर लोग निर्णायक की भूमिका निभाना चाहते है किन्तु परिणामों के लिए उनके पास कोई विकल्प नहीं---शोभाजैन Protected by Copyscape

मंगलवार, 12 अप्रैल 2016

कवितायेँ लिखना इतना आसान तो नहीं
जितना बचपन के किलकार भरे हाथों से
बरसती पोखर में,
कागज की नाव को तैरा देना,
कविता तो कोशिश है
मोम से पत्थर पर लकीर
को उकेरने की,
जिसमें पत्थर का तो रंग -रूप
बनता -बिगड़ता नहीं
बस मोम है जो घिसता है ... ... 

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