कवितायेँ लिखना इतना आसान तो नहीं
जितना बचपन के किलकार भरे हाथों से
बरसती पोखर में,
कागज की नाव को तैरा देना,
कविता तो कोशिश है
मोम से पत्थर पर लकीर
को उकेरने की,
जिसमें पत्थर का तो रंग -रूप
बनता -बिगड़ता नहीं
बस मोम है जो घिसता है ... ...
जितना बचपन के किलकार भरे हाथों से
बरसती पोखर में,
कागज की नाव को तैरा देना,
कविता तो कोशिश है
मोम से पत्थर पर लकीर
को उकेरने की,
जिसमें पत्थर का तो रंग -रूप
बनता -बिगड़ता नहीं
बस मोम है जो घिसता है ... ...
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