अपनी बात
शोभा जैन
कभी कभी हम अपनी मानसिकता के इस कदर शिकार हो जाते है की हम किसी दूसरे की बात को समझने की क्षमता ही खो देते है हम केवल वही सुनते है जो हम सुनना चाहते है भले ही वो अनुचित या अनुपयोगी हो |किन्तु किसी बात का वैचारिक सैलाब कभी -कभी इस कदर मानसिकता पर हावी हो जाता है की सही को गलत और गलत को सही दिखाई देने लगता है |हम वही देखते है जो हम देखना चाहते है |अपनी शैल से बाहर आकर दूसरे पहलु से अवगत होना ही नहीं चाहते |अक्सर ऐसे लोगो को जिद्दी माना जाता है किन्तु जिद में अगर समझदारी या बुद्धिमानी हो तो काम की |जो आप सोचते हो या जो आपके विचारों में चलता है वही सही हो ये जरुरी नहीं |हमारे भीतर विचारों का सैलाब होता है हमकों उसमें से एक -एक लहर की परत खोलनी होती है फिर चिन्तन के योग्य विषयों का चुनाव करना पड़ता है सारे ही विचार चिन्तन का विषय नहीं होते |अक्सर विचारों में अधिक उलझने वाले सही और गलत का फर्क नहीं समझ पाते और हर उस सोच को जो उनके मन में चल रही होती है उसे ही पुख्ता सच समझकर निर्णय ले लेते है |कहने का तात्पर्य विचार तो अथाह हमारे दिमाग में आते है किन्तु चिन्तन का विषय हमें चुनना पड़ता है उस चिन्तन से फिर निष्कर्ष निकलकर सामने आना चाहिए विचारों से कभी भी निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता |
शोभा जैन
कभी कभी हम अपनी मानसिकता के इस कदर शिकार हो जाते है की हम किसी दूसरे की बात को समझने की क्षमता ही खो देते है हम केवल वही सुनते है जो हम सुनना चाहते है भले ही वो अनुचित या अनुपयोगी हो |किन्तु किसी बात का वैचारिक सैलाब कभी -कभी इस कदर मानसिकता पर हावी हो जाता है की सही को गलत और गलत को सही दिखाई देने लगता है |हम वही देखते है जो हम देखना चाहते है |अपनी शैल से बाहर आकर दूसरे पहलु से अवगत होना ही नहीं चाहते |अक्सर ऐसे लोगो को जिद्दी माना जाता है किन्तु जिद में अगर समझदारी या बुद्धिमानी हो तो काम की |जो आप सोचते हो या जो आपके विचारों में चलता है वही सही हो ये जरुरी नहीं |हमारे भीतर विचारों का सैलाब होता है हमकों उसमें से एक -एक लहर की परत खोलनी होती है फिर चिन्तन के योग्य विषयों का चुनाव करना पड़ता है सारे ही विचार चिन्तन का विषय नहीं होते |अक्सर विचारों में अधिक उलझने वाले सही और गलत का फर्क नहीं समझ पाते और हर उस सोच को जो उनके मन में चल रही होती है उसे ही पुख्ता सच समझकर निर्णय ले लेते है |कहने का तात्पर्य विचार तो अथाह हमारे दिमाग में आते है किन्तु चिन्तन का विषय हमें चुनना पड़ता है उस चिन्तन से फिर निष्कर्ष निकलकर सामने आना चाहिए विचारों से कभी भी निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता |
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