अपनी बात
शोभा जैन
अक्सर स्त्री को अपनी बौद्धिकता स्थापित करने में बहुत लम्बा संघर्ष करना पड़ता है |ये आधुनिक युग में नहीं अपितु वैदिक काल से ही होता चला आया है |इसके पीछे कारण इतना गहरा है की शायद इसे कोई भी स्त्री सहजता से स्वीकार ही न कर पाये खासतौर पर आज की शिक्षित नारी जिसके ज्ञान का विस्तार अपरिहार्य हो रहा है |एक स्त्री होते हुए भी मैं यही कहूँगी की कहीं स्त्री अपने भीतर अपने ही विकल्प तो नहीं खोज रही |गनीमत है की खोज अभी स्त्री की अपनी सीमाओं में है अभी तक एक पुरुष के पास स्त्री का कोई विकल्प मौजूद नहीं है | किन्तु जिस तरह, जिस गति से,जिस रूप में स्त्री स्वयं को अब स्थापित कर रही है निः संदेह पुरुष को स्वयं को स्त्री विहीन जीवन के लिए तैयार करना होगा दरअसल स्त्री की पुरुषों के साथ कन्धा से कन्धा मिलाकर चलने की दौड़ इतने तीव्र हो चुकी है की वो अब रुकना ही नहीं चाहती अपनी संवेदनाओं को दबा छुपा बहला फुसलाकर अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहित है उसे घर गृहस्थी परिवार रिश्ते समर्पण से अब मोह नहीं वो आज की नारी है उसके लिए शायद शिक्षित होने की परिभाषा देहरी के बाहर होने के अर्थ में निहित है |शिक्षित नारी शायद घर की शोभा नहीं बन सकती वो किसी कंपनी में डायरेक्टर या फिर सी. ई. ओ. के पद पर ही अच्छी लगती है इन्ही अर्थों में अग्रसर रहा है नारी समाज |क्या अब वो स्त्री कभी नहीं मिल पायेगी जिसके प्रभाव के चलते पुरुष घर जल्दी आने को प्रयासरत रहता था |या फिर अपने मन की बात बताने को आतुर व्याकुल | क्या शिक्षित नारी संवेदनहीन हो गई है या फिर आज की नारी का 'अस्तित्व' ही उसके जीवन का केंद्र बन गया है जिसकी परिधि में पुरुष अकेला चक्कर काट रहा है |
शोभा जैन
अक्सर स्त्री को अपनी बौद्धिकता स्थापित करने में बहुत लम्बा संघर्ष करना पड़ता है |ये आधुनिक युग में नहीं अपितु वैदिक काल से ही होता चला आया है |इसके पीछे कारण इतना गहरा है की शायद इसे कोई भी स्त्री सहजता से स्वीकार ही न कर पाये खासतौर पर आज की शिक्षित नारी जिसके ज्ञान का विस्तार अपरिहार्य हो रहा है |एक स्त्री होते हुए भी मैं यही कहूँगी की कहीं स्त्री अपने भीतर अपने ही विकल्प तो नहीं खोज रही |गनीमत है की खोज अभी स्त्री की अपनी सीमाओं में है अभी तक एक पुरुष के पास स्त्री का कोई विकल्प मौजूद नहीं है | किन्तु जिस तरह, जिस गति से,जिस रूप में स्त्री स्वयं को अब स्थापित कर रही है निः संदेह पुरुष को स्वयं को स्त्री विहीन जीवन के लिए तैयार करना होगा दरअसल स्त्री की पुरुषों के साथ कन्धा से कन्धा मिलाकर चलने की दौड़ इतने तीव्र हो चुकी है की वो अब रुकना ही नहीं चाहती अपनी संवेदनाओं को दबा छुपा बहला फुसलाकर अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहित है उसे घर गृहस्थी परिवार रिश्ते समर्पण से अब मोह नहीं वो आज की नारी है उसके लिए शायद शिक्षित होने की परिभाषा देहरी के बाहर होने के अर्थ में निहित है |शिक्षित नारी शायद घर की शोभा नहीं बन सकती वो किसी कंपनी में डायरेक्टर या फिर सी. ई. ओ. के पद पर ही अच्छी लगती है इन्ही अर्थों में अग्रसर रहा है नारी समाज |क्या अब वो स्त्री कभी नहीं मिल पायेगी जिसके प्रभाव के चलते पुरुष घर जल्दी आने को प्रयासरत रहता था |या फिर अपने मन की बात बताने को आतुर व्याकुल | क्या शिक्षित नारी संवेदनहीन हो गई है या फिर आज की नारी का 'अस्तित्व' ही उसके जीवन का केंद्र बन गया है जिसकी परिधि में पुरुष अकेला चक्कर काट रहा है |
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